उत्तराखंड में बिना संक्रमित हुए कोरोना की मौत मर गया गुमनाम शख्स,

उठा सवाल व्यक्ति की मौत का जिम्मेदार कौन है?

देश के लोकप्रिय अखबार अमर उजाला के अनुसार
तीर्थनगरी ऋषिकेश में एक गुमनाम व्यक्ति कोरोना की मौत मर गया। वह जब जिंदा था तो अस्पतालों ने उसे दरवाजे से ही लौटा दिया। ओर जब मर गया तो पंचनामा भरने के लिए भी पंचायत होने लगी।
ओर अब हर कोई अपनी जिम्मेदारी एक दूसरे पर डाल रहा है, लेकिन सवाल अब भी बरकरार है।
कि आखिर गुमनाम व्यक्ति की मौत का जिम्मेदार कौन है?
क्या, उसके साथ सिर्फ इसलिए ऐसा व्यवहार किया गया कि कहीं उसे कोरोना तो नहीं?
क्योकि पूरे घटनाक्रम को अगर समझें तो यही बात निकलकर सामने आती है।
बता दे कि इस घटना के साक्षी एंबुलेंस चालक विरेंद्र सिंह पुरसोड़ा पुत्र चंदन सिंह पुरसोड़ा निवासी सुनार गांव, कंडी सौड़, टिहरी गढ़वाल से अमर उजाला संवाददाता ने बात की तो मानवीय व्यवहार के कई चेहरे सामने आए। कई सवाल उठे, जिनके जवाब मिलना अभी बाकी हैं। आइए विरेंद्र के ही शब्दों में ही समझने का प्रयास करते हैं, आखिर हुआ क्या था?
ऐसे हुई मौत

सीन-एक
मंगलवार सुबह 10 बजे डॉ. जगदीश जोशी, प्रभारी चिकित्साधिकारी फकोट को मुनिकीरेती थाना पुलिस की ओर से सूचना मिली थी कि रामझूला पुल हनुमान मंदिर के पास कोई व्यक्ति बीमार हालत में पड़ा है। वह जोर-जोर से खांस रहा है और छाती में दर्द की शिकायत बता रहा है। मैं डॉक्टर के आदेश पर करीब साढ़े 10 बजे एंबुलेंस लेकर पहुंचा और पुलिस की मदद से मरीज को एंबुलेंस में लिटाया। तब सभी को लग रहा था, संबंधित व्यक्ति को कोरोना हो सकता है। इसलिए पुलिस ने भी पीपीई किट पहनी थी। मैं मरीज को लेकर सीधे पूर्णानंद ग्राउंड पहुंचा, जहां चिकित्सकीय टीम ने मरीज का कोविड सैंपल लिया।

सीन-दो
इसके बाद मैं मरीज को लेकर करीब सवा 11 बजे राजकीय चिकित्सालय ऋषिकेश पहुंचा। यहां भी कोरोना के भय से अस्पताल स्टाफ ने मरीज को भर्ती करने से मना कर दिया। मैंने फोन पर यहां उपस्थित डॉक्टर की डॉ. जगदीश जोशी से बात कराई। उन्हेेंने बताया भी कि मरीज का कोविड रेपिड एंटीजन टेस्ट किया गया था, जिसकी रिपोर्ट तुरंत आ जाती है। मरीज निगेटिव है। बावजूद इसके अस्पताल स्टाफ ने मरीज को भर्ती करने से मना कर दिया। इस पूरे घटनाक्रम में करीब एक घंटा बीत गया और मरीज उमस भरी गर्मी में एंबुलेंस में ही तड़पता रहा।

सीन-तीन
इसके बाद मैं मरीज को लेकर एम्स अस्पताल पहुंचा, लेकिन यहां गार्ड्स ने मुझे गेट पर ही रोक दिया। एंबुलेंस को पीछे करवाकर एक लंबी सी गाड़ी को रास्ता देने को कहा गया। तभी एक साहब से दिखने वाले व्यक्ति ने गार्ड से पूछताछ की। इसके बाद उन्होंने गेट पर ही फरमान सुना दिया, हम इस मरीज को अपने यहां भर्ती नहीं कर सकते। इसके बाद मैं डॉ. जगदीश के आदेश पर मरीज को लेकर नरेंद्रनगर स्थित श्रीदेव सुमन राजकीय चिकित्सालय के लिए चला। मरीज की हालत लगातार बिगड़ रही थी। रास्ते में उसकी सांसे ऊपर-नीचे हो रही थीं। इस दौरान मैंने उसे पानी पीने के लिए पूछा, लेकिन उसने हाथ के इशारे से मना कर दिया। रास्ते में उसे तेज हिचकी आई। शायद उसके तभी प्राण पंखेरू उड़ चुके थे। मैं उसे नरेंद्रनगर स्थित अस्पताल लेकर पहुंचा, लेकिन वहां चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

सीन-चार
पंचनामे पर भी पंचायत
मरीज को मृत घोषित किए जाने के बाद अस्पताल प्रशासन ने इसकी सूचना पुलिस को दी तो मौके पर एक उपनिरीक्षक और एक होमगार्ड पहुंचे। उन्होंने पंचनामा तो नहीं भरा, उल्टा मेरे साथ यह कहते हुए बदसलूकी और गाली-गलौच की कि मैं मुर्दे को लेकर यहां क्यों आया हूं। इसके बाद मैं मरीज के शव को लेकर वापस थाना मुनिकीरेती पहुंचा, जहां पुलिस ने मरीज का पंचनामा भरा। मैंने थानाध्यक्ष आरके सकलानी को पूरे घटनाक्रम का वर्णन कागज पर लिखकर दिया है। यह भी लिखा कि मैं सुबह से भूखा-प्यासा पहले मरीज और फिर उसके शव को लेकर भटक रहा हूं, लेकिन नरेंद्रनगर पुलिस की ओर से मेरे साथ दुव्यर्शव्हार किया गया।
अगर मैं झूठ बोल रहा हूं.. तो सीसीटीवी फुटेज चेक करे एम्स प्रशासन
एम्स के जनसंपर्क अधिकारी हरीश थपलियाल का कहना है कि मंगवार को इस तरह का कोई मामला अस्पताल प्रशासन के संज्ञान में नहीं आया है। इस पर एंबुलेंस के चालक विरेंद्र सिंह का कहना है कि यदि वह झूठ बोल रहा है तो एम्स प्रशासन गेट पर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज चेक करा सकता है। उन्होंने एम्स प्रशासन पर अपनी लापरवाही छिपाने का आरोप लगाया।

एंबुलेंस चालक के साथ पुलिस कर्मियों द्वारा की गई बदसलूकी की बात मेरे संज्ञान में नहीं आई है। हां, अगर चालक ने लिखित में इसकी शिकायत दर्ज कराई है तो निश्चित तौर पर आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ जांच के बाद कार्रवाई की जाएगी।
– डॉ. योगेंद्र सिंह रावत, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, टिहरी गढ़वाल

निश्चित तौर पर जहां मरीज की मौत हुई, वहीं उसका पंचनामा भरा जाना चाहिए था, लेकिन जब एंबुलेंस चालक मरीज का शव लेकर वापस थाना मुनिकीरेती पहुंच गया तो हमने पंचनामा भरने की कार्रवाई की। चालक से लिखित में पूरे घटनाक्रम का वर्णन भी लिया गया है।
– आरके सकलानी, थाना प्रभारी निरीक्षक मुनिकीरेती

मंगलवार को रामझूला क्षेत्र से एंबुलेंस में लाए गए मरीज के कोविड-19 की जांच से संबंधित कोई कागजात नहीं था। कोविड संदिग्ध होने के चलते उसे अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया। यदि उसे भर्ती किया जाता और वह कोविड-19 पॉजिटिव निकल जाता तो कई लोग संक्रमित हो जाते।
– एनएस तोमर, मुख्य चिकित्साधीक्षक

खबरों का नेटवर्क पर ये पूरी खबर लोकप्रिय अखबार अमर उजाला से ली गई है पर हमारे सवाल यहा पर खरे है
क्योंकि यदि चालक की एक एक बात सत्य है
तो क्या ये माना जाए कि प्रदेश की जीरो टालरेश की त्रिवेंद्र सरकार को महकमा कहे या सिस्टम कुछ नही समझता??
वो भी तब जब
उत्तराखंड के लोकप्रिय मुख्यमंत्री स्वयं स्वास्थ्य महकमें के मंत्री है या फिर बात कुछ और है पड़ताल होनी चाहिये ।ताकि
सच बाहर आये और आगे किसी ओर के साथ भगवान ना करे ये सब फिर कभी हो।

शर्मसार: पांच अस्पतालों ने गर्भवती महिला को भर्ती करने से मना किया, मौत

तो वही मणिपुर में एक 20 साल की गर्भवती महिला को समस्या होने पर पांच अस्पतालों ने कथित तौर पर भर्ती करने से मना कर दिया, जिसके बाद उसकी मौत हो गई। ओर वहा की सरकार ने मानवता को कलंकित करने वाली इस घटना पर जांच के आदेश दे दिए हैं।
बता दे कि महिला के परिजनों का दावा है कि वे बुधवार देर रात तक सभी अस्पतालों के चक्कर काटे, लेकिन उन्हें कहा गया कि डॉक्टर उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए महिला को भर्ती नहीं किया जा सकता। गर्भवती को सेनापति जिले में दोपहर 2 बजे सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
लेकिन उसे तकलीफ होने पर डॉक्टरों ने उसे रात 10:30 बजे किसी अन्य अस्पताल में रेफर कर दिया। उसे बाद में इंफाल लाया गया, जहां दो सरकारी और तीन निजी अस्पतालों ने भर्ती करने से इनकार कर दिया। बृहस्पतिवार तड़के महिला की मौत हो गई।

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