पहले ये जान ले कि
उत्तराखंड मैं विधायकों को हर साल 3.75 करोड़ की निधि विकास कार्यों के लिए मिलती है।
ओर उत्तराखंड में 70 निर्वाचित और एक मनोनीत विधायक हैं।

ओर हमारे विधायकों को वेतन के अलावा निर्वाचन क्षेत्र भत्ता, सचिवीय भत्ता, जनसेवा भत्ता, चालक भत्ता और डीजल-पेट्रोल भत्ता मिलते हैं। वेतन व भत्ते मिलाकर विधायक को प्रतिमाह 2.91 लाख रुपये मिलते है

अब ये जाने की
गांव की छोटी सरकार को
मतलब पंचायत प्रतिनिधियों को मिलता है
ग्राम प्रधान को 1500 मासिक,
उप प्रधान को 500 मासिक,
जिला पंचायत अध्यक्ष को 10000 मासिक,
जिला पंचायत उपाध्यक्ष को 5000 मासिक
जिला पंचायत सदस्य को 1000 प्रति बैठक
ब्लॉक प्रमुख को 6000 मासिक
उप प्रमुख को पंद्रह सौ मासिक
और क्षेत्र पंचायत सदस्य को प्रति बैठक 500 रूपये मानदेय के रूप में दिया जाता है
जबकि सांसद एवं विधायकों को लाखों रुपए वेतन भत्ते दिए जाते हैं जो आपने ऊपर देख भी लिया और पढ़ भी लिया है
बस इसी वजह से आज पंचायत प्रतिनिधियों की नाराजगी सामने आ रही है और छोटी सरकार परेशान है
क्योंकि पंचायतीराज अधिनियम 2016 की धारा 30 प्रधान धारा 69 क्षेत्र पंचायत एवं धारा 107 में जिला पंचायतों को लोक सेवक माना है ओर हमारे सांसद व विधायक भी पंचायत प्रतिनिधियों की भांति लोक सेवक हैं
मगर जब उनके वेतन भत्ते
ओर सुविधाओं को देखा जाए और दूसरी पंचायत प्रतिनिधियों के मानदेय को तो पूरी बात खुद समंझ में आ जाती है


वही आज इस बात को लेकर उत्तराखंड के लोकप्रिय युवा नेता महेंद्र सिंह राणा जो ब्लाक प्रमुख द्वारीखाल है और प्रमुख सगठन के अध्यक्ष भी उन्होंने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से आग्रह किया है कि उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम 2016 में संशोधन किया जाए
या फिर सांसद विधायक की भांति ही वेतन भत्ते दिए जाएं
उन्होंने कहा कि त्रिवेंद्र सरकार या तो पंचायत प्रतिनिधियों को माननीय सांसदों एवं माननीय विधायकों के जैसे ही वेतन भत्ते प्रदान करे अन्यथा पंचायती राज अधिनियम में संशोधन कर पंचायत प्रतिनिधियों को अपना व्यवसाय करने हेतु आवश्यक कानूनी प्राविधान करे
क्योकि आज प्रदेश के पंचायत प्रतिनिधियों की नारजगी साफ़ जाहिर जो हो रही है

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