शमशाद अहमद
भारत की आबादी का सत्तर फीसद आज भी गावों में रहता है। इसमें से साठ फीसद लोग खेती पर ही निर्भर हैं। इसी से इनकी रोजी-रोटी चलती है। हमेशा सरकारें किसानों को कोई न कोई लालच देकर सत्ता में आ जाती हैं और सत्ता में आते ही किसानों के नाम पर राजनीति करती हैं। इस समय बेमौसम बारिश ने किसानों की खड़ी फसलों को तबाह कर दिया है। इस बार की पैदावार से अगर किसानों का ही पेट भर जाए, तो बड़ी बात है। मगर इस पूरे प्रकरण में सरकार ने किसानों को एक बार भी आश्वासन नहीं दिया कि उनकी फसलों के नुकसान की भरपाई की जाएगी। वहीं, अभी कुछ समय पहले पराली जलाने पर प्रशासन से लेकर मीडिया और सरकार तक सभी किसानों के पीछे पड़ गए थे।हम मीडिया रात-रात भर जाग कर खेतों में जाकर जलती पराली दिखाने में लगे थे। पूरा प्रशासन किसानों पर जुर्माना लगाने पर तुला था। कितना जुर्माना वसूला गया, सरकार इसकी समीक्षा कर रही थी। लेकिन आज कोई भी किसानों की सुध नहीं ले रहा। अब समय आ गया है जब किसानों को ही अपनी आवाज उठाने के लिए खड़ा होना पड़ेगा। सरकारों को यह सीखना चाहिए कि किसानों के हितों की रक्षा कैसे की जाती है। सलमान गौर के साथ शमशाद अहमद की रिपोर्ट

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