उत्तराखंड में सरकार और व्यवस्था का संवेदनहीन चेहरा बार-बार सामने आ जाता है। सरकार की करतूतों का खामियाजा अंततः जनता को अपनी जान देकर चुकाना पड़ता है। देश को बचाने, स्वाभिमान से खड़े होने, आत्मनिर्भर बनाने और राष्ट्रभक्ति के रैपर में लपेटकर छलने वाले धूर्तों के लिये प्रसव पीड़ा से मरने वाली मासूम देश नहीं होती। उनके लिये देश की परिभाषा सत्ता में पहुंचना है। पौड़ी जनपद के रिखडीखाल में प्रसव पीड़ा से मरने वाली मासूम स्वाति ध्यानी की मौत अंदर तक हिला देती है। राजेन्द्र ध्यानी की 23 वर्षीय पत्नी स्वाति अभी अपने जीवन के सपने बुन ही रही थी, स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली ने उसकी दुनिया खत्म कर दी। पलायन रोकने की लफ्फाजी करने वाली सरकार के मुंह में यह तमाचा है। मैं कई बार इस मुद्दे पर लिखता रहा हूं। इस तरह की घटनायें लगातार हो रही हैं, सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इस घटना के आलोक में मेरा एक पुराना लेख-

क्रूरतम, संवेदनहीन, मूर्ख सत्ता का खेल!

25 जुलाई, 2019 को सीमान्त पिथौरागढ़ जनपद में सड़क और चिकित्सा व्यवस्था न होने के कारण एक गर्भवती महिला को जंगल में प्रसव कराना पड़ा। जनपद के ग्राम गोरीछाल मेतली की 21 वर्षीय गर्भवती महिला रेखा देवी पत्नी हरीश सिंह को गांव की महिलायें गांव से 65 किलोमीटर दूर धारचूला में ले जा रही थी। जंगल के रास्ते में ही उसे बच्चे को जन्म देना पड़ा।
– 17 जुलाई, 2019 को चंपावत जनपद से 67 किलोमीटर दूर ग्राम सभा डांडा कठौनी की 23 वर्षीय गर्भवती महिला की अत्यधिक रक्तस्राव होने से मौत हो गई। इस गांव में सड़क, अस्पताल और एएनएम की व्यवस्था नहीं है।
– 28 मार्च 1019 को उत्तरकाशी जनपद के मोरी ब्लाक के डोमाल गांव निवासी 32 वर्षीय किरण पत्नी राजाराम की प्रसव के दौरान ईलाज न मिलने से मौत हो गई।
– 24 जनवरी 2019 को कर्णप्रयाग के अस्पताल की लापरवाही और सही ईलाज न मिलने से गर्भवती महिला लक्ष्मी देवी की मौत हो गई।
-20 सितंबर, 2018 को टिहरी के ग्राम धनसाड़ी बासर की 27 वर्षीय महिला सुचिता ने महिला चिकित्सालय देहरादून के बरामदे में बच्चे को जन्म दिया बेड और उपचार न मिल पाने के कारण दोनों की मौत हो गई।
– 3 जुलाई, 2018 को रुद्रप्रयाग के जिला अस्पताल में कांडा सिमतोला निवासी आशा देवी को भर्ती किया गया। दोनों को यहां उपचार न मिलने से हायर सेंटर रैफर किया गया। रास्तें में ही दोनों की मौत हो गयी।
– 23 सितंबर, 2018 को अल्मोड़ा जनपद के सोमेश्वर में रात्रि में कोई डाॅक्टर न होने के कारण नर्स स्टाफ ने शैल गांव की गर्भवती महिला रेणु भाकुनी का प्रसव करा दिया। तबियत बिगड़ने पर उसे अल्मोड़ा जिला अस्पताल रैफर किया गया। रास्तें में मनान में उसकी मौत हो गयी।
– 10 नवंबर, 2017 को कर्णप्रयाग के ग्वाड गांव की गर्भवती महिला लक्ष्मी देवी की मौत हो गयी।

उपरोक्त कुछ घटनायें राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था को समझने के लिये काफी हैं। ये घटनायें इस बात को भी साफ करती हैं कि प्रसव जैसी सबसे जरूरी और सामान्य स्वास्थ्य सुविधाओं से भी राज्य की जनता किस हद तक महरूम है। सरकार की जनविरोधी नीतियों और संवेदनहीनता के कारण राज्य की महिलाओं को असमय मौत का शिकार होना पड़ रहा है। कितना दुर्भाग्यपूर्ण और अमानवीय है कि बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के नाम पर सरकारें बनाने वाली राजनीतिक पार्टियों का व्यवहार हमारी जनता के साथ कितना पशुवत है। क्रूरतम है। जब भाजपा नरेन्द्र मोदी के नाम पर देश बदलने के लिये वोट मांग रही थी तो हमने सवाल किया था कि जिस देश को बचाने की बात तुम कर रहे हो उसमें ये महिलायें हैं या नहीं? भले ही मोदी जी और उनके भक्तों के पास इस बात का जबाव न हो, लेकिन उनकी अमानवीयता और आम जनता को ‘देशभक्ति’ के नाम पर ठगने-छलने वाली नीति का जबाव उक्त घटनायें हैं। इससे पहले कांग्रेस सत्ता में थी उसके लिये भी जनता के सवाल कभी महत्वपूर्ण नहीं रहे। इन दोनों ने जिस तरह से इन 19 सालों में हमारी बेकद्री की है, हमारा शोषण किया है, हमारी मासूम बहिनों को मौत के दरवाजे पर पहुंचाया है, उनके फूल जैसे जीवन को कुचला है, मुस्कुराती जिन्दगियों को लीला है उसके खिलाफ अब आवाज उठनी चाहिये। इन्हें सबक सिखाने के लिये जो गुस्सा लोगों के अंदर पनप रहा है उसे फूटना चाहिये। नहीं तो बहुत देर होने वाली है। सरकार हमारी जिंदगियों के साथ व्यापार करने पर उतारू हो गई है। उसके लिये बड़े अस्पतालों के हित महत्वपूर्ण हो गये हैं। वह पीपीपी मोड के माध्यम से पूरे पहाड़ की स्वास्थ्य सेवाओं को लील देना चाहती है। वह हमारी मां-बहिनों के जीवन का सौदा करना चाहती हैं। यह बहुत निल्लर्जता है, बेशर्मी है।

पिछले दिनों एक चित्र ने बहुत विचलित किया। हमारे साथी भार्गव चंदोला ने उत्तरकाशी में प्रसव पीड़ा से कराहती महिला को जब डंडों में बांधकर ले जाने का फोटो पोस्ट किया तो मैं कुछ देर के लिये सन्न रह गया। अवाक रह गया। विचलित। पीड़ा, असहायता और गुस्सा तीनों एक साथ स्फुटित हो पड़े। भाई जयदेव भट्टाचार्य ने इस मसले पर बहुत ही संवदेनशील और भावुक कर देने वाली पोस्ट लिखी। बहुत द्रवित करने वाली। नाकारा नीति-नियंताओं को ललकारने वाली। इस चित्र ने बताया कि हम किस तरह की क्रूर, संवेदहीन, नासमझ, जनविरोधी व्यवस्था का हिस्सा हैं। राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं को सरकार ने जिस हालात में पहुंचा दिया है, उससे इनके मुनाफाखोर चरित्र और अमावनीय चेहरा साफ दिखाई देने लगा है। उत्तरकाशी के एक गांव में प्रसव पीड़ा से कराहती महिला को डंडों पर बांधकर अस्पताल ले जाने की यह घटना जनता की मजबूरी और सरकार की क्रूरता को बताने के लिये काफी है।

अंदर तक हिला देने वाली उपरोक्त घटनाओं से नीति-नियंता विचलित नहीं होते। अचंभित नहीं होते। द्रवित नहीं होते। अफसोस भी नहीं जताते। उनके लिये ये सामान्य घटनाएं हैं। ईश्वर की इच्छा है। रोजमर्रा का रूटीन है। मुख्यमंत्री इन घटनाओं पर चिंतित नहीं हैं। उनके लिये स्वास्थ्य पुरातन परंपरा से अपने आप ठीक हो जाने वाली प्रक्रिया है। इसे मुख्यमंत्री के इस वक्तव्य से समझा जा सकता है। मुख्यमंत्राी कहते हैं कि गाय से कई असाध्य रोग दूर हो जाते हैं। उनका कहना है कि गाय के नजदीक रहने से टीवी जैसी बीमारियां दूर हो जाती हैं। गाय की पीठ में हाथ फेरने से कई लाइलाज बीमारियां अपने आप समाप्त हो जाती हैं। उन्होंने यह भी दावा किया कि जब वे कृषि मंत्री थे तो उन्होंने ‘पंचगव्य’ पर शोध कराया था। उनका कहना है कि गौ-मूत्र से किडनी सांस और दिल का शर्तिया इलाज हो जाता है। उन्होंने इसे वैज्ञानिक परीक्षण कहा। प्रदेश के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और नैनीताल के सांसद अजय भट्ट ने तो यहां तक कह दिया कि गरुड़ गंगा के पत्थरों के अर्ग को पीने से गर्भवती महिलाओं का कितना भी कठिन प्रसव हो तुरंत हो जाता है। इसे पीने से आॅपरेशन की जरूरत नहीं होती है। इन दो महान ‘वैज्ञानिको’ की सरपरस्ती में यह राज्य चल रहा है। इन दो जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों के लिये लोगों का जीवन क्या है, उनके वक्तव्यों से समझा जा सकता है। यही इस राज्य का दुर्भाग्य है कि इनकी समझ ने हमारी बेेवस जनता को मरने के लिये छोड़ दिया है। महिलाओं की कराह भी इन सत्तालोलुपों के कान तक नहीं पहुंचती।

यह मात्र इन दो महानुभाओं की बात नहीं है। इन अठारह सालों में हमने इसी समझ के लोग सत्ता में बैठाये हैं। कांग्रेसी भी ऐसे ही थे। बहुत भ्रष्ट-बेईमान। घाघ। लेकिन वे अपनी ‘मूर्खता’ को जाहिर नहीं करते थे। उन्होंने भी इस राज्य की जो बैंड बजाई उसी का परिणाम था कि हमारा पाला उनसे भी ‘खतरनाक’ लोगों से पड़ा। वे ‘गांधीवाद’ के चोले में लूट रहे थे, ये ‘राष्ट्रवाद’ रैपर पर जहर बेच रहे हैं। इन दोनों के लिये जनता की आवाज के कोई मायने नहीं हैं। जहां एक तरफ हमारी मातायें-बहनें सामान्य ईलाज के अभाव में सड़क पर दम तोड़ रही हैं, वही सरकार सरकारी अस्पतालों को निजी हाथों और पीपीपी मोड़ पर देने की साजिश कर रही है। फाउंडेशनों को अस्पताल सौंपने की तैयारी कर रही है। निजी अस्पताल खोलने के लिये भूमि कानून में संशोधन ला रही है। पिछले साल अल्मोड़ा जनपद के सोमेश्वर, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी और यहां तक कि राजधानी देहरादून के जिला अस्पताल के मरामदे में प्रसव पीड़ा से कराहती महिलाओं ने अपने अजन्मे बच्चों के साथ दम तोड़ दिया। इतना ही नहीं हल्द्वानी, देहरादून, कोटद्वार, रामनगर, टनकपुर जैसे शहर पहाड़ से आये बीमार लोगों की नई बस्तियों के रूप में तब्दील हो रहे हैं। यहां वे उन निजी अस्पतालों की क्रूर यातना का शिकार हो जाते हैं जो उन्हें जीने और मरने नहीं देते। मैं कई ऐसे परिवारों को जानता हूं, जो अपने परिजन का ईलाज कराने के लिये अपनी जमीन बेचकर हल्द्वानी में किराये के मकान में रह रहे हैं। बड़ी या लाइलाज बीमारियों की बात तो छोड़िये छोटे-मोटे आपरेशन और ईलाज के लिये भी उन्हें इन्हीं शहरों के अस्पतालों में मजबूरन आना पड़ता है। एक बड़ी संख्या उन लोगों की भी है जो अपने परिजनों के साथ दिल्ली या अन्य शहरों में ईलाज के लिये जाते हैं। मुझे याद नहीं है कि भारत तो छोड़ो दुनिया में कोई देश ऐसा नहीं होगा जहां के नागरिकों के साथ उनके द्वारा चुनी सरकार ऐसा क्रूर और पशुवत व्यवहार करती हो। उत्तरकाशी से आया यह चित्र नाकाबिल और क्रूर सत्ता प्रतिष्ठान के चरित्र का आईना है।

कांग्रेस-भाजपा सरकारों ने इन 18   सालों में राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं को निजी हाथों में सौंपने का रास्ता तैयार किया है। राज्य में जितने भी छोटे-बड़े अस्पताल बने हैं उन्हें नाकारा साबित करने की साजिश की है। डाॅक्टर, दवाओं स्टाफ आदि को लेकर जिस तरह का रवैया इन सरकारों का रहा उससे राज्य के मैदानी शहर अस्पतालों के नाम पर लूट के नये अड्डे बन गये। सरकार ने लगे हाथ इन अस्पतालों को पीपीपी मोड पर देना शुरू कर दिया। विश्व बैंक की हैल्थ डेवलेपमेंट प्रोजेक्ट के तह यहां 900 करोड़ की परियोजना में कई अस्पताल पीपीपी मोड पर निजी अस्पतालों को दे दिये गये। मुख्यमंत्री के चुनाव क्षेत्र का अस्पताल हिमालयन अस्पताल चलाने लगा। टिहरी का जिला अस्पताल भी हिमालयन अस्पताल के हवाले कर दिया। सरकार ने बड़े सुनियोजित तरीके से श्रीनगर का मेडिकल कालेज भी सेना के हवाले करने का कुचक्र रचा। लगभग तीन दर्जन से ज्यादा अस्पताल पहले से ही पीपीपी मोड पर हैं। सरकार ने अभी पौड़ी का जिल अस्पताल, पावौ, घंडियाल, वीरौंखाल, भिकियासैंण और रामनगर का अस्पताल पीपीपी मोड पर देने की घोषण की है।

इन सारे अस्पतालों के बारे में बताया गया कि ये स्वस्थ्य सेवाओं को आगे बढ़ाने के लिये किया जा रहा है, लेकिन असलियत यह है कि पहले जो छोटा-मोटा इलाज हो भी जा रहा था अब वह भी अनुबंधित अस्पताल अपने फायदे के लिये हर मरीज को अपना शिकार समझने लगा है। टिहरी का अस्पताल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। अभी पिछले दिनों हरिद्वार के मेला अस्पताल में पीपीपी मोड पर चलाये जा रहे डायलिसिस यूनिट में बिजली चले जाने से और जनरेटर न चलने से एक मरीज की दर्दनाक मौत हो गई। हमारे दो पहले मेडिकल कालेजों हल्द्वानी और श्रीनगर में सुविधाओं का अभाव और अव्यवस्था का जो आलम है शर्मसार करने वाला है। कई मरीजों को इन कालेजों से जिनी अस्पतालों में रैफर किया जाता रहा है। दरअसल, ये रैफर सेंटर के अलावा कुछ नहीं हैं। हम मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत से पूछना चाहते हैं कि अगर ये अस्पताल निजी संस्थानों ने चलाने हैं, फाउंडेशनों ने चलाने हैं, सेना ने चलाने हैं, तो तुम मुख्यमंत्राी क्यों हो? तुम इनके प्रवक्ता क्यों नहीं बन जाते? इनके यहां नौकरी क्यों नहीं कर लेते? या गोबर और गौ—मूत्र की दुकान क्यों नहीं खोल लेते? अपने सांसद को भी साथ रख लो कुछ ‘गंगलोडे’ लेकर। अपनी दुकान कहीं और चलाओ। जनता को बख्श दो!

लेखक का नाम चारु तिवारी जी है  जो किसी परिचय के  मोहताज़ नही 

 

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